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प्रिंस और पादरी भाग - 2

प्रिंस और पादरी (2) 


प्रिंस के लिए "कुटिया" का विकल्प खोजा जाने लगा । एक बॉडीगार्ड ने "रथ" का सुझाव दिया जिसे सिरे से खारिज कर दिया गया क्योंकि "सनातनी" परंपरा की कोई भी चीज प्रिंस को पसंद नहीं थी । तब एक "कंटेनर" का आइडिया आया । यह आइडिया प्रिंस को जम गया । इसमें सनातनी परंपरा का कुछ भी नहीं था बल्कि यह तो "अंग्रेजों के आधिपत्य" की याद दिला रहा था । इतने सालों तक गुलामी झेली थी हमने इसलिए गुलामी से ऐसे कैसे निजात पा सकते हैं हम लोग ? गुलामी के प्रतीकों को अभी तक संभाल कर रखे हुए हैं हम लोग । अगर कोई उन प्रतीकों को हटाने की कोशिश भी करे तो प्रिंस को बड़ा नागवार गुजरता है । अपनी संस्कृति, अपना धर्म,  अपनी परंपराओं पर आम लोग गर्व कर सकते हैं "खानदानी" लोग नहीं । उन्हें तो गुलामी के प्रतीक चिन्ह ही पसंद आते हैं  । खानदानी लोग तो चाहते हैं कि यह देश उनकी जागीर बना रहे । यदि गुलामी के प्रतीक चिन्ह हट जायेंगे तो लोगों के दिमाग से भी गुलामी के विचार मिट जायेंगे । इसलिए गुलामी के प्रतीक रहने जरूरी थे   
धूमधाम के साथ उन कंटेनरों को आलीशान होटल में तब्दील किया गया । सब प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवाई गईं थीं उन कंटेनरों में । उन कंटेनरों को देखकर ऐसा लगता था जैसे कोई महल हवा में उड़ कर कहीं जा रहा हो । प्रिंस की प्रतिष्ठा का भी तो ध्यान रखना था । पानी की तरह पैसा बहाया गया उन कंटेनरों में । यहां की विशेषता यही है कि ए सी में बैठकर मंहगाई की बात होती है । शराब पीकर नैतिकता पर व्याख्यान दिया जाता है और दो चार रखैल रखकर पति पत्नी के आदर्श संबंधों पर तप्सरा किया जाता है । भ्रष्टाचार के "स्वीमिंग पूल" में तैरकर कट्टर ईमानदारी की कसमें खाई जाती हैं । दुश्मन देशों से चोरी चोरी मिलकर देश प्रेम का लिबास पहना जाता है । देश को लूटकर देश के लिए बलिदान देने का राग अलापा जाता है । 

"वन यात्रा" का कार्यक्रम इस तरह बनाया गया था जिससे अधिकाधिक लोग इस यात्रा से जुड़ सकें । ऐसे स्थानों पर जहां "खानदान" का अभी तक असर है, यात्रा का मार्ग निर्धारित किया गया । "चमचों" को पहले से ही काम पर लगा दिया गया भीड़ इकठ्ठी करने के लिए । "खैराती लालों" को इस यात्रा के गुणगान करने की जिम्मेदारी सौंप दी गई । तथाकथित बुद्धिजीवियों को इस यात्रा का महिमा मंडन करने का दायित्व सौंपा गया । लिबरल्स को "नैरेटिव" गढने का काम सौंपा गया । और तो और "आंदोलनजीवियों" की भी विशेषज्ञ सेवाएं ली गईं । यात्रा की सफलता के समस्त इंतजाम किए गये ।  सब इंतजाम होने के बाद यात्रा प्रारंभ हुई । 

यात्रा का मुख्य मकसद था लोगों एवं पादरियों से बात करना । प्रभु यीशु के बारे में जन जन को बताना । सनातन धर्म पर प्रहार करना । इसलिए जगह जगह पर पादरियों से चर्चा के कार्यक्रम तैयार किये गये । इन पादरियों से संवाद हेतु ऐसे ऐसे पादरी चुने गये जिन पर सामाजिक सौहार्द भंग करने के ना केवल आरोप लगे थे अपितु उनके खिलाफ थानों में FIR भी दर्ज हो और वे कोर्ट से जमानत पर बाहर हों । जमानत पर छूटना प्रभु यीशु का चमत्कार है । यह बात जन जन तक जानी चाहिए इसलिए ऐसे ऐसे पादरी चुने गये थे । और किसी देवी देवता में ऐसी चमत्कारिक शक्ति है क्या ? बस, यही चीज जनता को दिखानी थी । 

प्रिंस और पादरी के संवाद की व्यवस्था की गई । एक पादरी जो भारत माता को अपवित्र कहता था , उससे संवाद करवाया गया । वह खुलेआम कहता था कि वह ईसाइयों की संख्या बढाने के मिशन पर निकला है और वह सबको ईसाई बनाकर ही दम लेगा । तब इस देश पर इन पादरियों का ही राज्य होगा । ऐसी विलक्षण प्रतिभा के धनी पादरी से प्रिंस का साक्षात्कार करवाया गया । "दिव्य शक्ति" युक्त इस महान पादरी से मिलकर प्रिंस धन्य हो गया । दोनों में इस तरह संवाद होने लगा 
"प्रभु , क्या दुनिया में प्रभु यीशु ही एकमात्र गॉड हैं" ? 
"निस्संदेह । इस धरती पर प्रभु यीशु ही एकमात्र गॉड है अन्य कोई नहीं" 
"ये जो सनातनी लोग अनेक भगवान लिए बैठे हैं उनका क्या" ? 
"पाखण्ड है सब । प्रभु यीशु के अतिरिक्त और कोई शक्ति नहीं है" 
"फिर ये दुर्गा वगैरह आदि शक्ति का क्या है" ? 
"प्रभु यीशु के सम्मुख कोई कुछ नहीं है" 
"मानव कल्याण कैसे होगा प्रभु" ? 
"प्रभु यीशु को अपनाकर ही मानव कल्याण होगा और कोई रास्ता नहीं है । हम लोग इस काम में बरसों से लगे हैं । गरीब लोगों को एक एक बोरी चावल देकर उन्हें प्रभु यीशु की शरण में ला रहे हैं । हमारे अंग्रेजी के स्कूल जो ईसाई मिशनरियों द्वारा संचालित हैं , यह काम बहुत तेजी से कर रहे हैं । इन स्कूलों में बच्चों से केवल यीशु से प्रेम करना सिखाया जाता है अन्य किसी से नहीं । आज इसका परिणाम यह है कि हमारी आबादी कुछ जगह 70 % तक हो गई है । दक्षिण की कुछ सरकारें हमारी पूरी मदद कर रही हैं । उत्तर में अभी हमारा काम कम है । पूर्व में तो हम लगभग पूरा ईसाईकरण कर चुके हैं। पश्चिम में भी कुछ जगह बना रहे हैं हम । आप भी हमारी मदद कीजिए" । 
"जी, अवश्य । आप हमें पुनर्स्थापित करने में मदद करिए फिर हम आपको ईसाईकरण करने की खुली छूट दे देंगे । हम भी यही चाहते हैं कि इस देश को प्रगतिशील बनाना है तो यह सब तो करना ही होगा । मेरे लिए और कोई आदेश प्रभु" ? 
"बस, इतना काफी है । इतना होने के बाद तो यह देश एक बार फिर से गुलाम हो ही जाएगा । हमें भी चैन तभी आएगा जब हम इस देश को फिर से गुलाम देख लेंगे" । 
"वह दिन जल्दी ही आने वाला है प्रभु । यहां के कुछ लोगों को देश वेश से कुछ लेना देना नहीं है । उन्हें तो बस "मुफ्त" का माल चाहिए । मुफ्त के माल के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं । कुछ लोगों की आस्थाएं इस देश से कम और दुश्मन देश से ज्यादा हैं । वे भी जी जान से लगे हुए हैं इस देश को फिर से गुलाम बनाने के लिए । फिर "खैराती" , बुद्धिजीवी, लिबरल्स, पत्तलकार वगैरह जो हमारे टुकड़ों पर पल रहे हैं , जी जान लगा रहे हैं फिर से इस देश को गुलाम बनाने में । अबकी बार देखना , हम सब मिलकर यह लक्ष्य हासिल कर ही लेंगे । बस, आपकी कृपा दृष्टि चाहिए" ।
"वो तो भरपूर मिलेगी वत्स । बस, ये सनातनी लोग किसी भी सूरत में आजाद नहीं रहने चाहिए । हम इन्हें फिर से गुलाम बनाकर ही दम लेंगे" । 

इस दैवीय संवाद से प्रिंस खिल उठे । अब सत्ता सुंदरी मिलने का रास्ता साफ साफ दिखाई देने लगा था उसे । पीछे पीछे "जड़खरीद गुलामों" की भीड़ जय जयकार करते हुए यात्रा पर निकल पड़ी । 

समाप्त 

श्री हरि 
12.9.22 

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9 Comments

Mithi . S

23-Sep-2022 04:34 PM

Behtarin rachana

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Simran Bhagat

22-Sep-2022 08:58 PM

👌👌👌

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Gunjan Kamal

22-Sep-2022 06:23 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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